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शनिवार, 8 मई 2010

बदलता बीहड़ और बाजार

बहुत दिन हुए बीहड़ पर कोई पोस्ट नहीं लिख सका। इसके दो कारण रहे। एक मेरी व्यस्तता और दूसरे बीहड़ में फैली शांति। शांति जो ऊपरी है। इन दिनों बीहड़ी इलाके में एक नया दौर शुरू हुआ है। हम सब साक्षी हैं १९९० के बाद के दौर के। यह वह दौर था जब अचानक बाजार फैलने लगा। तोड़ फोड़ शुरू हुआ। बाजार ने हाथ पांव फैलाना शुरू किया। देखते ही देखते सभ्यता का चेहरा बदलने लगा। कई मंजिले भवन और सभी सुविधाओं से संपन्न कॉम्पलैक्स। यह नया बीहड़ था। बाजार का बीहड़ जो लूटना जानता था बिना किसी मुरब्बत है। इस बीहड़ ने पूरा नक्शा ही बदल दिया है। अब अपराधी बीहड़ की तरफ नहीं भागता है वह शहर में रहता है और बाइकर्स गैंग चलाता है। इटावा में हाल ही में पकड़े गए ऐसे बाइकर्स लुटेरों ने स्वीकार किया कि वह डकैत बनना चाहते थे लेकिन लुटेरे बन गए। यह क्या है। अपराध का बाजारीकरण या बाजार के बीहड़ी असर की बुनियाद। कहना मुश्किल है लेकिन बीहड़ का चेहरा समाज के साथ ही बदला है यह बीहड़ पर नजर रखने वाले जानते हैं। जब आजादी की जंग भी तब इस बीहड़ में ब्रह्मचारी सरीखे डकैत थे। आजादी के बाद देश स्वाभिमान से खड़ा होना सीख रहा था तो इस बीहड़ में स्वाभिमान की लड़ाई लड़ने वाले मोहर सिंह, माधौ सिंह, मलखान, लाखन और रूपा जैसे डकैत हुए। देश बड़ा उद्योग लगे और बीहड़ में अपराध का उद्योगीकरण हुआ और अब बाजारीकरण।